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किसी भी अपराधी को छुपा लेना भी अपराध की श्रेणी में आता है, जानिए IPC कि इस धारा में !

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बी. आर.अहिरवार

अक्सर देखा जाता है कि कोई व्यक्ति किसी अपराध को घटित कर देता है। और वह व्यक्ति घटना स्थल से भाग कर अपने रिश्तेदार या मित्र के घर छुप जाता है,अगर वह अपने मित्र या रिस्तेदार को सब कुछ बताए कि वह एक अपराधी है।ओर उसने कोई अपराध को करके फरार हुआ है या मित्र या रिश्तेदार को पहले से ही पता हैं कि व्यक्ति अपराधी है। तब भी जानते हुए उसको आश्रय देगा या घर में छुपा कर रखेगा तो वह भी एक दण्डिनीय अपराध है।

भारतीय दण्ड संहिता,1860 की धारा 212 की परिभाषा :-

अगर कोई व्यक्ति द्वारा ऐसे व्यक्ति को आश्रय दिया जाता हैं जो कोई भी अपराध को करके घटना स्थल से भागा हुआ है। इस तरह के अपराध को होने के लिए निम्न बातों का होना आवश्यक हैं:-

1. आश्रय देने वाला व्यक्ति जानता है कि वह व्यक्ति जिसे आश्रय दिया जा रहा है एक अपराधी है ओर अपराध करने घटना स्थल से भागा हुआ है।

2. किसी भी व्यक्ति को आश्रय से तात्पर्य है:- भोजन, पानी, धन, वस्त्र, आयुध,गोला-बारूद, सवारी हेतु साधन देना आदि आता है।

नोट :- अगर पत्नी को पति द्वारा या पति को पत्नी द्वारा कोई अपराध होता है, इनके द्वारा एक दूसरे को छुपा लेना या आश्रय दिया जाना आश्रय अपराध नहीं होगा।】

भारतीय दण्ड संहिता,1860 की धारा 212 में दण्ड का प्रावधान :-

धारा 212 का अपराध किसी भी प्रकार से समझौता योग्य नहीं होता है। यह अपराध संज्ञये एवं जमानतीय अपराध होते है।इनकी सुनवाई प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट द्वारा पूरी की जाती हैं। धारा 212 के अपराध के दण्ड की सजा को तीन श्रेणी में बांटा गया है:-

(1). ऐसे अपराधी को आश्रय देना जिसकी सजा मृत्यु से दण्डिनीय है तब आश्रय देने वाले व्यक्ति को 5 वर्ष के लिए कारावास और जुर्माने से दण्डिनीय किया जाएगा।

(2). ऐसे अपराधी को आश्रय देना जिस अपराध की सजा आजीवन कारावास या दस वर्ष तक कि हो तब आश्रय देने वाले व्यक्ति को 3 वर्ष की कारावास एवं जुर्माने से दण्डिनीय किया जा सकता है।

(3). ऐसे अपराधी को आश्रय देना जिसकी सजा एक वर्ष के लिए, न कि दस वर्ष के लिए कारावास से दण्डिनीय हो तब आश्रय देने वाले व्यक्ति को जो भी सजा होगी उसकी दीर्घतम अवधि की सजा का एक चौथाई सजा या उचित जुर्माना या दोनो से दण्डित किया जाएगा।

उधारानुसार वाद :- उच्चतम न्यायालय ने तमिलनाडु राज्य बनाम नलिनी तथा अन्य के वाद में विनिशिचत किया कि एक पत्नी जो अपने पति के साथ रह रही हैं, वहाँ पर पति के आश्रय की दोषी नहीं मानी जा सकती है। इस प्रकरण में अभियुक्ता को स्वर्गीय राजीव गांधी(पूर्व प्रधानमंत्री)के हत्या के अपराध में विचारित किया गया था।जो कि एल. टी. टी. ई. एक तमिल उग्रवादी समूह की सदस्यता थी।

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