शिमला:- हिमाचल प्रदेश में कोरोना वायरस के चलते सात महीने से स्कूलों में पढ़ाई बंद हैं। लेकिन अब सरकार स्कूलों में बच्चों को बुलाने के लिए कोशिश कर रही है। सूबे के स्कूलों में कोरोना संकट के बीच शुरू हो हुए अनलॉक चरण 5 में केंद्र सरकार ने स्कूलों को चरणबद्ध तरीके से खोलने के निर्देश दिए हैं। 15 अक्तूबर के बाद स्कूलों को चरणबद्ध तरीके से खोलने के निर्देश थे।
पहले चरण में 10 वीं और 12 वीं बोर्ड कक्षाओं वाले छात्रों को ही स्कूल बुलाया जाएगा। उसके बाद छोटी कक्षाओं पर विचार किया जाएगा। शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह ठाकुर ने कहा कि छोटी कक्षाओं के बच्चों को स्कूल बुलाने में समय लग सकता है।
प्रदेश सरकार का कहना है कि पहले चरण में स्कूलों में दसवीं और 12वीं के बच्चे बुलाए जाएंगे। हालांकि, इस दौरान बच्चों के माता-पिता की सहमति जरूरी है। लेकिन सरकार की ओर से जारी सहमति पत्र पर सवाल उठ रहे हैं। सरकार के सहमति पत्र के अनुसार, यदि स्कूलों में बच्चों को कोरोना हुआ तो उसके लिए सरकार और स्कूल जिम्मेदार नहीं होंगे। यानी स्कूल में बच्चों को कोरोना होने पर माता-पिता ही जिम्मेदार होंगे। पत्र के अनुसार, कोरोना होने पर माता-पिता स्कूलों को जिम्मेदार नहीं ठहरा पाएंगे। अभिभावकों को इस सहमति पत्र को भरना भी अनिवार्य होगा।
हिमाचल के शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह ठाकुर ने साफ किया कि छात्रों को स्कूलों में तब तक नहीं बुलाया जाएगा, जब तक अभिभावकों की सहमति नहीं होगी। इसके लिए ईपीटीएम यानी ऑनलाइन तरीके से अध्यापक-अभिभावकों की बैठकें करने के निर्देश दिए गए हैं। जहां संख्या कम है। वहां पर फिजिकली भी बैठक हो सकती है। इसमें स्कूलों को माइक्रो प्लान तैयार करने के निर्देश दिए गए हैं, जिसमें अभिभावकों की राय शामिल होगी।
शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह ठाकुर ने कहा कि छोटी कक्षाओं के बच्चों को स्कूल बुलाने में समय लग सकता है। सरकार के ताजा निर्देशों के तहत 18 सितंबर तक ईपीटीएम यानि ऑनलाइन बैठकें होंगी। हिमाचल में अब 100 फीसदी स्टाफ स्कूल आ रहा है। इसमें शिक्षक और गैर शिक्षक दोनों शामिल हैं। ऑनलाइन पढ़ाई भी स्कूलों से ही करवाई जा रही है, लेकिन अब स्कूलों में छात्रों को बुलाने के लिए तैयारियां शुरू हो गई हैं।
फिलहाल देखना यह होगा कि अभिभावक अपने बच्चों को स्कूल भेजने में क्या निर्णय लेते हैं! उन्हीं के निर्णय के आधार पर आगे की योजनाएं तैयार की जा सकती है। कोरोना महामारी का डर अभिभावकों में अभी पूर्ण रुप से व्यापक है। जिसके चलते अभिभावक बच्चों को स्कूल में भेजने की जिम्मेदारी उठा पाएंगे या नहीं यह देखना भी दिलचस्प होगा।