ब्यूरो:-
19 अक्टूबर:- डिजिटल भुगतान और समाधान प्रणाली को तेजी से आगे बढ़ाने के सकारात्मक नतीजे सामने आने लगे है। भारतीय रिजर्व बैंक के ताजा आंकड़ों के अनुसार डिजिटल भुगतान को प्रोत्साहन की वजह से बीते वित्त वर्ष 2019-20 में चेक के जरिये खुदरा भुगतान का आंकड़ा काफी नीचे आ गया है।
आंकड़ों के अनुसार, बीते वित्त वर्ष में मात्रा के हिसाब से कुल खुद भुगतान में चेक समाशोधन (क्लियरिंग) का हिस्सा घटकर मात्र 2.96 प्रतिशत रह गया। हालांकि, मूल्य के हिसाब से यह 20.08 प्रतिशत रहा। वित्त वर्ष 2015-16 में नोटबंदी के बाद केंद्रीय बैंक ने डिजिटल भुगतान को काफी तेजी से आगे बढ़ाना शुरू किया था। उस समय खुदरा भुगतान में मात्रा के हिसाब से चेक का हिस्सा 15.81 प्रतिशत और मूल्य के हिसाब से 46.08 प्रतिशत था। डिजिटलीकरण के प्रयास कितने सफल रहे हैं, इसका अनुमान ताजा आंकड़ों से लगता है। 2015-16 में चेक के जरिये भुगतान का मात्रा के हिसाब से 15.81 प्रतिशत और मूल्य के हिसाब से 46.08 प्रतिशत हिस्सा था। वित्त वर्ष 2016-17 में यह आंकड़ा घटकर क्रमश: 11.18 प्रतिशत और 36.79 प्रतिशत पर आ गया। रिजर्व बैंक के अनुसार अगले साल यह आंकड़ा और घटकर मूल्य के हिसाब से 7.49 प्रतिशत और मात्रा के हिसाब से 28.78 प्रतिशत पर आ गया। वहीं 2018-19 में यह और घटकर क्रमश 4.60 प्रतिशत और 22.65 प्रतिशत पर आ गया। रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार वित्त वर्ष 2015-16 से 2019-20 के दौरान मात्रा के हिसाब से डिजिटल भुगतान सालाना आधार पर 55.1 प्रतिशत की बढ़ोतरी के साथ 593.61 करोड़ से 3,434.56 करोड़ पर पहुंच गया। वहीं मूल्य के हिसाब से यह 920.38 लाख करोड़ रुपये से 1,623.05 करोड़ रुपये पर पहुंच गया। इसमें सालाना आधार पर 15.2 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई।
वित्त वर्ष 2016-17 में डिजिटल भुगातन 593.61 करोड़ से 969.12 करोड़ पर पहुंच गया। मूल्य के हिसाब से यह इस दौरान 1,120.99 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गया। इसके बाद 2017-18 में यह मात्रा के हिसाब से 1,459.01 करोड़ पर और मूल्य हिसाब से 1,369.86 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गया। बाद में इसमें और तेज वृद्धि हुई और 2018-19 में यह मात्रा के हिसाब से 2,343.40 करोड़ और मात्रा के हिसाब से 1,638.52 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गया। कोविड-19 महामारी की वजह से लागू लॉकडाउन के चलते मात्रा के हिसाब से आगे डिजिटल भुगतान का आंकड़ा कई गुना बढ़ सकता है। हालांकि, इस बड़े संकट की वजह से लोगों के समक्ष आई दिक्कतों के चलते मूल्य के हिसाब से डिजिटल भुगतान का आंकड़ा नीचे आ सकता है।
बैंकों के अवरुद्ध ऋण नीतिगत निर्णयों में बाधक:-
बैकों के अवरुद्ध ऋण अधिक होने के कारण मौद्रिक नीति के मार्चे पर उठाए गए कदमों का असर होने में रुकावट आती है। यह बात भारतीय रिजर्व बैंक के अधिकारियों द्वारा तैयार रिपोर्ट में कही गई है। इस रिपोर्ट में सरकारी बैंकों में और पूंजी डालने आवश्यकता पर भी बल दिया गया है। इसमें कहा गया है कि इससे ऋण प्रवाह बढ़ाने में मदद मिलेगी और मौद्रिक नीति संबंधी कार्रवाइयों का असर भी तेज होगा।
इस अध्ययन में कहा गया है कि किसी बैंक में गैर निष्पादित आस्तियां (एनपीए) होने से मौद्रिक नीति का असर धीमा पड़ता है और ऋण कारोबार में वृद्धि धीमी पड़ती है। इस पर्चे को को आरबीआई के आर्थिक और नीतिगत अनुसंधान विभाग में कार्यरत सीलू मुदुली और हरेंद्र बेहेरा ने तैयार किया है। ऐसी रपट में प्रस्तुत विचार लेखकों के व्यक्तिगत मत माने जाते हैं।
बैंक कैपिटल एंड मॉनिटरी पालिसी ट्रांसमिशन इन इंडिया (भारत में बैंकों की पूंजी और मौद्रिक नीति निर्णय के प्रभाव) शीर्षक की इस रपट में कहा गया है कि ऐसे बैंकों के सामने कई ऐसे ढ़ांचागत मामले और रोड़े पैदा होते है जिससे नीतिगत निर्णय का असर कम हो जाता है। पर्चे में कहा गया है कि एनपीए का ऊंचा स्तर एक बड़ा कारण है जिससे नीतिगत निर्णयों के प्रभाव पहुंचने में रुकावट आती है।