ब्यूरो
कोरोना काल मौन पालकों के लिए मुसीबत बनकर आया है। एक ओर सरकार की ओर से आर्थिक मदद नहीं मिल रही है दूसरी ओर प्राकृतिक आहार न मिलने से उन्हें मधुमक्खियों के लिए भोजन की व्यवस्था करनी पड़ रही है।क्योंकि सरकार की तरफ से जो मधुमक्खी पालन के लिए सबसिडी मिलती थी वो अभी तक मौन पलकों को नई मिल पाई है जिसके चलते मोन पालक अपने पैसे खर्च कर मधुमक्खियों के लिए आहार खरीदने के लिए मजबूर है ।
इस समय प्रदेश में फूलों का सीजन नहीं होता तो ऐसे में मधुमक्खियों को प्राकृतिक आहार नहीं मिल पा रहा है। हर साल इस मौसम में मौन पालक मधुमक्खियों के बक्सों को लेकर दूसरे राज्यों में जाते थे। वहां उन्हें प्राकृतिक फूलों से आहार मिलता है।
इस साल कोराना के चलते मौन पालक बाहरी राज्यों में मधुमक्खियों को नहीं ले जा पाए हैं। इससे पहले भी कोरोना महामारी के चलते मधुमक्खियों के डिब्बों से निकाले शहद को खरीदार नहीं मिले थे। इससे भी उन्हें आर्थिक नुकसान झेेलना पड़ा। कोरोना काल में सरकार की ओर से किसी भी प्रकार की आर्थिक सहायता न मिलने से मधुपालक अपने खर्चे पर अपनी मधुमक्खियों को आहार खिलाने को मजबूर हैं।
सरकार देती है सबसिडी
सरकार मधुमक्खी पालन के लिए सबसिडी देती है। इसके अलावा एक स्थान से दूसरे स्थान पर मधुमक्खियां ले जाने के लिए भी उन्हें खर्च दिया जाता है। मौन पालक सितंबर के अंत और अक्तूबर में दूसरे राज्यों में मधुमक्खियों को ले जाते हैं।
–डॉ. डीआर वर्मा, उपनिदेशक, उद्यान विभाग कांगड़ा।