बी. आर.अहिरवार
भोपाल :- भारतीय संविधान में सभी व्यक्ति को अपने मौलिक अधिकार प्राप्त है एवं अपने मोलिक अधिकारों का हनन होता है तो व्यक्ति हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक जा सकता हैं। वहाँ पर उनके मौलिक अधिकारों का संरक्षण होता है इसी प्रकार अनुसूचित जाति के व्यक्ति के मूलभूत अधिकारों का हनन होता है तो वह अपने विभाग अनुसूचित जाति कार्यालय में शिकायत कर सकता है। आज हम बात करे फर्जी जाति प्रमाणपत्र से नोकरी करने वालो की तो हमारे देश में 20% लोग फर्जी जाति प्रमाण बनवाकर शासकीय नोकरियों कर रहे हैं परन्तु आज तक कोई कार्यवाही नही होती है इसका सबसे महत्वपूर्ण कारण यह है कि उनकी शिकायत कागज तक ही होती है आगे कार्यवाही होते होते रुक जाती है।
क्या है मामला जानिए
कहते हैं किसी अन्य से गलती हो जाए तो भूल कहलाती है परन्तु एक कानून के जानकार जानबूझकर गलती करे तो यह गलती क्षमा योग्य नहीं होती है सतीश वर्मा/ रामअजोर इंदौर का रहने वाला है जो अन्य पिछड़ा वर्ग का सदस्य हैं एवं उत्तर प्रदेश(रायबरेली) का पैतृक रहवासी है और हैरान की बात यह है कि मध्यप्रदेश का उसका जाति प्रमाण पत्र बन गया। नियम के अनुसार जाति प्रमाण पत्र के लिए पूर्वज 10 अगस्त 1950 में कहाँ के रहवासी थे उसका प्रतिवेदन लगाया जाता है वहाँ पर भी इस व्यक्ति ने फर्जी कागज का प्रयोग किया हुआ होगा।
वर्तमान में वह एक वकील के रूप में हाईकोर्ट(खंडपीठ) इंदौर में कार्य कर रहा है। जिसने अपनी सारी पढ़ाई अनुसूचित जाति का फर्जी सदस्य बनकर की है, जिस कानून में सिखाया जाता है कि फर्जी कार्य करना एवं संविधान में मिले किसी व्यक्ति के मौलिक अधिकार को हनन करना, अनुसूचित जाति एवं जनजाति के व्यक्ति के मूलभूत अधिकारों का हनन करना एक दंडनीय अपराध होता है वो विधि (कानून) की पढ़ाई भी उसने फर्जी जाति प्रमाणपत्र से की अनुसूचित जाति का सदस्य बनकर।एवं हाईकोर्ट जबलपुर से बार कोसिल का रजिस्ट्रेशन भी अनुसूचित जाति का सदस्य बनकर प्राप्त किया। कालेज में भी अनुसूचित जाति का सदस्य का जाति प्रमाण पत्र बनवाकर लाभ लिया।
छात्रवृत्ति से लेकर के शासकीय योजनाओं एव प्रतियोगिता परीक्षा में भी अनुसूचित जाति के सदस्य के रूप में बैठा। इसकी शिकायत आयुक्त अनुसूचित जाति विकास कार्यालय भोपाल में की गई एवं आयुक्त द्वारा सतीश वर्मा/राम अंजोरे वर्मा जो कोरी समाज का अनुसूचित जाति प्रमाण पत्र बनवाकर रखा है उसकी जाँच हेतु गठित राज्य स्तरीय छानबीन समिति इंदौर को 28 अगस्त 2020 को भेज दिए गए हैं। आयुक्त श्री बी. चंद्रशेखर के इंदौर पुलिस अधीक्षक से 15 दिवस के अंदर जाँच पूरी करने को कहा है।