ब्यूरो:- विश्व विख्यात कुल्लू दशहरा में 360 सालों के इतिहास में पहली बार इतिहास को बदल कर रख दिया है। कोरोना काल में इस बार दशहरे में मात्र 11 देवी- देवताओं ने भाग लिया है। हालाँकि भगवान रघुनाथ की मूर्ति को सन 1650 में अयोध्या से कुल्लू लाया गया था। लेकिन कुल्लू दशहरा उत्सव का आयोजन 1660 से किया जा रहा है। लेकिन इस बीच करीब 300 साल तक अंग्रेजों के शासन के दौरान भी देवी-देवताओं के महाकुंभ अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा में सैकड़ों की संख्या में देवी-देवता भाग लेते आए हैं।
दशहरा को जिला कुल्लू के साथ प्रदेश व देश के लोग कई सदियों तक याद रखेंगे। दशहरा में देव परपंरा को निभाने के लिए मात्र सात देवी देवताओं को बुलाया गया था। जबकि दशहरा में 11 देवी देवता शामिल हुए। भले ही दशहरा में देवी देवताओं को निमंत्रण देने की परंपरा 1960 के बाद और नजराना देने का दौर शुरू हुआ।
मगर इसे पहले भगवान रघुनाथ की तरफ से बुलावा दिया जाता था। बताया जा रहा है कि 1660 के बाद ढालपुर में शुरू हुए दशहरा उत्सव के बाद से उत्सव में 300 या अधिक देवी देवता भाग लेते आए हैं। 1971 में गोलीकांड के चलते अगले साल 1972 को रघुनाथ ढालपुर नहीं आए थे और रथयात्रा नहीं हो सकी थी।
बावजूद दशहरा में जिलाभर से 50 से 60 देवी देवताओं ने भाग लिया था। वहीं इस साल दशहरा में बंजार के साथ आनी व निरमंड क्षेत्र से एक भी देवी-देवता ने भाग नहीं लिया है।जिला देवी-देवता कारदार संघ के पूर्व जिला अध्यक्ष दोत राम ठाकुर ने कहा कि अंग्रेजो के समय में भी देव पंरपरा को नहीं छेड़ा गया और सैकड़ों की संख्या में देवी देवताओं की भागीदारी रही है। उन्होंने कहा कि ढालपुर में जब से दशहरा का आयोजन होता आया है, तब से लेकर इस बार मात्र 11 देवी देवताओं ने भाग लिया है।